छत्तीसगढ़ी फिल्मों के "बाबूजी" आशीष सेन्दरे के दूसरी पूण्यतिथि पर शब्दाजंलि




छ्त्तीसगढ़िया अभिनय मे रचाबसा एक नाम आशीष सेंदरे, जिसे अभिनय विरासत मे मिला अपने बाबूजी से, जिसने आपने बाबूजी की प्रेरणा को सार्थक किया हजारों छत्तिसगढ़िया प्रेमियों का "बाबूजी" बनकर, जिसने कलाजीवन की शुरुआत की थिएटर कलाकार के तौर पर उस दौर मे जब छत्तीसगढ़ी फिल्मे बनना लगभग बन्द हो गयी थी,जब छ्त्तीसगढ़ छत्तीसगढ़ नही मध्यप्रदेश हुआ करता था, जब छत्तीसगढ़ के अस्तित्व की लड़ाई छत्तीसगढ़ के लोकजनमानस के अस्तित्व की लड़ाई बनने लगा था। जब इस लड़ाई का बीड़ा कलाकार, साहित्यकार, जनमानस एक स्वर मे उठा रहा था, जब इन्ही सबके बीच एक साहस उमड़ रहा था वो साहस था फिर से अपनी बोली को सिनेमाघरो तक पहुँचाने का, और इन्ही सब मे पलरहा था छत्तीसगढ़ी फिल्मों का अद्वितीय चरित्र "बाबूजी" जो अपनी बाबूजी जी की प्रेरणा से हजारों युवाओं की प्रेरणा बनने का संघर्ष तय कर रहा था।आन्दोलनों संघर्षो के उदय के बीच सतीश जैन निर्देशित बन रही थी फिल्म *"मोर छइंया भुईया"* और साथ ही सज रही थी,बिसात शह और मात की छत्तीसगढ़ की आवाज जाकर दिल्ली मे गूँजने लगी थी,और सियासतदानों के सिंघासन भी इससे अछूते नही थे, इन्ही सबसे बीच अटल सरकार ने एक नवम्बर को छत्तीसगढ़ को मंजूरी दे दी,जनआन्दोलन को विजय मिली पूरा राज्य जश्न मे झूम उठा इसी जश्न का हिस्सा बनी छ्त्तीसगढ़ी आवाज को सिनेमा के माध्यम से उठाने वाली ये फिल्म, फिल्म रिलीज हुयी,और ऐसे रिलीज हुयी कि जिसकी कल्पना किसी ने न की होगी, थियेटरों मे लाइने थी,टिकटों की मारेमारी थी,फिल्म सूपरडूपर हिट हुयी और हिट हुआ वो कैरेक्टर भी जो जाना गया बाबूजी के नाम से।






आशीष सेन्दरे जी ने अपने पैतृक शहर भिलाई के थियेटर से अपने कलाजीवन की प्रारंभिक शुरुआत की और छत्तीसगढ़िया फिल्मों से होते हुये भोजपुरी हिन्दी सहित कई प्रसिद्ध चरित्र जिये और कम ही समय इडंस्टी मे रहने के बाबजूद मोर छइया भुइया, खलिहान, बार्डर, आई लव यू, दईहार द काउ मैन सहित लगभग छोटी बड़ी फिल्मों मे 100 से ज्यादा फिल्मे की।


आज से ठीक दो साल पहले आशीष सेन्दरे जी ने लम्बी बिमारी के बाद अपना शरीर त्याग दिया, यह उनके परिवार के साथ साथ पूरे छत्तीसगढ़िया समाज और छत्तीसगढ़ी बोली प्रेमियों के ऊपर किसी वज्रपात से बिल्कुल कम नही था,वो पचास बर्ष से भी कम उम्र मे अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ कर चले गये, और दे गये रिक्ति जो सदैव अपूर्ण ही रहेगी।उनके मृत्यु के बाद पूरे छत्तीसगढ़ फिल्म इडस्टी ने उन्हे श्रद्धाजंलि देते हुये विदा किया।




जब हम लोक की बात करते हैं, तब साथ ही लोककला ही बात करते हैं, तब हम लोकगीत, साहित्य की बात करते हैं, और तब हम लोककलाकार की भी बात करते हैं। क्योकिं ये सब ही मिलकर जिस जीवन की जीवंतता सुनिश्चित करते हैं, उसे ही लोकजीवन कहते हैं,जिसका उद्देश्य लोकमंगल होता हैं।


आज आशीष जी की दूसरी पूण्यस्मृति हैं आज उनके छत्तीसगढ़िया समाज को दिये अमूल्य योगदान के लिये हम उन्हे शत शत नमन करते हैं।उनके स्थान को भर पर निश्चय ही असंभव हैं, परन्तु उनका अभिनय उनकी अद्भुत आवाज सदैव लोगो के दिनो मे राज करत रहेगी।आशीष जी जैसे कलाकार बहुत कम होते हैं, लोकजीवन का अहम हिस्सा बनकर आम व्यक्ति के जीवन मे जीते हैं।




अभी पिछले दिनों ऐसे ही अचानक ही उनकी बेची त्रेता से मुलाकात हुयी प्रारंभ मे तो आशीष जी के बिषय मे ज्यादा जानकारी नही थी, लेकिन अध्ययन करने पर पता चला ऐसे कलाकार बहुत कम ही होते हैं,उनकी बेटी त्रेता आशीष जी के द्वितीय पुण्यतिथि पर कहती हैं कि "उन्होने अपने भीतर अपने पिता जी को जिया हैं, दो साल पहले का आज का दिन जीवन का सबसे दर्दनाक दिन था,उन्होनें बहुत बड़ी चीज खो दी थी"


हम आशीष सेन्दरे जी को सत् सत् नमन करते हैं,वो साथ न रहकर भी अपने जीवन्त अभिनय के माध्यम से सबके बीच हैं।उनके परिवार को इस दुखद त्रासदी सहने की क्षमता के साथ ईश्वर सदैव आगे बढ़ने की प्रेरणा दे।

लेखन:- अनुपम अनूप


Comments

Popular posts from this blog

Comedian UTTAM KEWAT (उत्तम केवट) Satna Madhya Pradesh

Bagheli mahakavi Shambhu prasad Dwivedi शम्भूप्रसाद द्विवेदी (Shambhu kaku) शम्भू काकू (Sahityakar) Introduction

Shriniws Nivas Shukl "saras" (Bagheli Kavi & Sahityakar) Introduction