Padma Shri Babu Lal Dahiya (पद्म श्री बाबूलाल जी दाहिया जी ने बताया बघेली की क्षमता )

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पद्म श्री बाबूलाल जी दाहिया जी ने सोसल मीडिया के द्वारा बताया बघेली की  क्षमता

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काहे म धउ निबल है आपन य बघेली ?

मिंटो हाल में आयोजित टैगोर यूनिवर्सिटी  भोपाल के 7 दिवसीय विश्व रंग कार्यक्रम में 30 देशों के आये साहित्यकारों के बीच 9 नवम्बर को खचा खच भरे हुए वनमाली हाल में  एक लोकभाषा कवियों का भी काब्यपाठ  हुआ ।

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डॉ श्री राम परिहार जी की अध्यक्षता में आयोजित इस बोलियों के कवि सम्मेलन में बघेली , बुंदेली ,मालबी निमाड़ी, बृज, भोजपुरी, मैथिली आदि कई बोलियों के कवियों ने काब्यपाठ किया।
तमाम बोलियों के कवियों को सुन कर यह अहसास हुआ कि बोलिया वस्तुतः अपने अपने क्षेत्र की लोक ब्यौहार की सम्पूर्ण भाषा ही होती है । जो अपने साथ उस क्षेत्र के मुहावरे लोकोक्तियां पहेलियां कहावतो लोकगीतो भर को नही समस्त लोक सम्बेदना को ही समेट कर चलती है जिससे  राष्ट्र भाषा हिंदी भी सम्रद्ध शाली बनती है क्योकि जब कोई शहर का ब्यक्ति गेंहू चावल खरीदने जाता है तो उसका काम झोला बोरा, साइकल रिक्सा, मोलभाव, बाट तराजू ,पैसा दाम आदि मात्र 10 ,,12 शब्दो मे चल जाता है। पर वही गेहूं चावल जब  गाँव का किसान उगाता है तो खेत की तैयारी से लेकर कट गह कर  उसके भंडार गृह में आते आते लगभग दो ढाई सौ शब्द बनते है। किन्तु वह शब्द हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृति जैसी  समृद्ध भाषाओं के नही होते ?  बल्कि बुंदेलखंड में बुंदेली ,बघेल खण्ड में बघेली मलबा में मालबी  अबध में अवधी आदि बोलियों के होते है।
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इसी से बोलियों के ताकत का पता चलता है कि उनकी पैठ अपने अपने क्षेत्र में कितनी गहरे तक होती है ?
इस लोक भाषा के कवियों के काब्यपाठ में मेरे बगल में बुंदेली के कवि जहाँ महेश कटारे शुगम दिख रहे है वही बघेली के डॉक्टर शिवशंकर मिश्र सरस् सीधी और डा, श्री राम परिहार के साथ साथ बृज के डॉ सोम ठाकुर भी  दृष्टिगोचर हो रहे है। इसी तरह अन्य बोलियों के कवि और कवियत्री भी अपनी अपनी बोलियों का प्रतिनिधित्व कर रहे है।इस मे कोई दो राय नही कि बघेली का लिखित साहित्य अन्य बोलियों के मुकाबले बहुत पीछे रचा गया। किन्तु सभी बोलियों की कविताओं को सुनने के बाद यह कहने में अब कोई सुबहा संकोच नही कि,
padma shri babulal dahiya


काहे म धउ निबल है निबल है आपन य बघेली,
झोपड़ी से अब महल है आपन य बघेली।
कबहूं भले व छोट क टोरिया लगत रही,
दिढ़ पुट्ठ अब सबल है आपन य बघेली।।

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